Friday, 31 August 2012

देश प्रेम

देश प्रेम                       
देश को आगे बढ़ाना है ,

एक सुंदर संसार साजना है,
भ्रष्टाचार जैसे दीमक को जढ़ से मिटाना है, 
येही समय है कुछ केर गुज़रने का,
माटी का कार्ज़ चुकाना है,
देश को आगे बढ़ाना है .
बूढ़े बाघ्ड़ बिल्लो को हाटाना है,
और देश के नोजवान को अब ये बेढः उठाना है,
उज्वाल संसार की लोंह को प्रज्वालित कर दिखाना है,
 देश को आगे बढ़ाना है ,
एक सुंदर संसार जो साजना है.
बहुत हुई कुर्बानिय अब कर के कुछ दिखाना है,
जाहे लेना पद्र्हे हर घर में एक भगत सिंह को जन्म ,
या बाना पद्र्हे रानी चासी,
पर अब अपनों से ये देश आज़ाद करना है,
काले धान को वोपिस ला गरीबो का पेट भराना है,
बचों को सिख्षा का महत्त्व बताना है. 
अच्हा बनना है तो कुढा  भी खुद उठाना है,
अन्ना के काधे पे नहीं अब तो खुदही ईट से ईट बजाना है,
आने वाली पीढ़ी का जीवन जो सवर्ग बनाना है,
बाल श्रम  से अब कइयो को बाचना है,
और अपने देश की सब से कमज़ोर कढी गरीबी को हटाना है,
पढाई में हम आगे है पूरे झाहन को ये दिखाना है,
कारोबार की क्या बात केरे सेन्सेक्स हम ही बनाना है.
देशा की फोज को अछा गोला बारूद पहुचेंगे,
हरबार की तरह दुश्मन के चके झुढ़एंगे,
हर मासूम की जान का बदला पूरा कर के दिखाएँगे,
हर  कोशिश को सफल बनना है तो,
एक नई क्रांति को लाना होगा,
हम सब को एक जुट हो जाना होगा,
बाध के कफ़न सर पे,
मौत से टकराना होगा,
नहीं तो बस नोकर बनके जीवन बिताना होगा 
और बढ़ी बढ़ी हांक के झूठे महल गिरना होगा,
पर अब जब जंग चिढ ही गई है तो उलटे पैर नहीं घुमाना होगा,
अब तो बस बुरे का अंत को अच्छाई का डूंका बजाना होगा 
तभी तो ये देश अस्लियात में खुशनसीब से भरा अफसाना होगा. 




     
  

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